(1) J= Judge-Intermediate के बाद CLAT से India के उच्च कोटि के Law- College में Admission पाना, फिर जज या उच्च कोर्ट का वकील बनना ।
(2) E= Engineer – Intermediate के बाद I.I.T. में प्रवेश पाना, फिर उच्च कोटि का Engineer बनना।
(3) P= P.C.S.- Intermediate के बाद graduation/Medical/Engineering करके P.C.S. में आसानी से Select होना।
(4) S= Scientist बनना Intermediate तक अच्छी पढ़ाई हो जाने पर वैज्ञानिक बनने के इच्छुक बच्चे आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए आसानी से वैज्ञानिक बन सकेगें।
(5) I= I.A.S.- Intermediate के बाद graduation/Medical/Engineering करके I.A.S. में आसानी से Select हो सकेगें।
(6) D= Doctor- Intermediate करने के बाद NEET में आसानी से Select होना, फिर अच्छे / उच्च कोटि के Medical College में Admission पाकर अच्छा डॉक्टर बनना।
(7) E= Educationist- Intermediate के बाद Graduation, Post Graduation, Ph.D., NET करके Assistant Professor बनना और आगे चलकर अच्छा शिक्षा-शास्त्री कहलाना।
(8) M= Management Intermediate / Graduation के बाद I.I.M. में प्रवेश पाकर सरकारी संस्थान में या Multinational Company में आसानी से प्रबन्धकीय पद पर आसीन होना।
(9) A = Accountant (Chartered)- Intermediate/Graduation के बाद आसानी से Chartered Accountant बन सकेगें।
(10) S= Secretary (Company)- हमारे यहाँ इन्टरमीडिएट तक पढ़ लेने वाले बच्चे इतने प्रबुद्ध हो चुके होगें कि Company Secretary का कोर्स करना चाहेगें तो बड़ी आसानी से कोर्स पूरा कर लेगें।
(i) हमें काफी हद तक भरोसा है कि हमारे कॉलेज आदर्श कॉलेज ऑफ एजूकेशन, सलारपुर, निकट DEWA SHARIF, जिला- बाराबंकी से इण्टरमीडिएट कर लेने वाले बच्चों में से अधिकांश बच्चे JEPSIDEMAS के किसी ओहदे तक पहुँच सकेगें और जो बच्चे उपरोक्तानुसार सफल नहीं हो पावेगें, उनमें से अधिकांश बच्चे आसानी से सरकारी विभागों में Class-III की नौकरी पा जावेगें, जिसे पाने के लिए अधिकांश बच्चें स्वयं या उनके Guardian यह कहते पाए / सुनें जाते है कि कोई मुझको मेरे पुत्र/पुत्री / रिश्तेदार को Class- III की नौकरी; जिसकी भर्ती होने जा रही है; दिला दे तो मैं 15-20 लाख रूपयों तक खर्च कर दूँगा। जबकि मुझे पूरा भरोसा / विश्वास है कि मेरे College में हॉस्टल में रहकर कक्षा XII तक पढ़ लेने वाले बच्चों; जिनपर अधिकतम खर्चा 10- 15 लाख रूपये तक ही आने की सम्भावना है; को बाद में JEPSIDEMAS में पहुँचना आसान हो जावेगा। जो बच्चे JEPSIDEMAS में नहीं पहुँच सकेगें, उनमें से अधिकांश Class- III की सरकारी नौकरी आसानी से पा सकेगें, ऐसा मेरा यकीन है।
(ii) ईमानदारी से परीक्षण किया जाय तो यह पाया जायेगा कि ज्यादातर अमीरों के बच्चों की पढ़ाई में रूचि कम होती जाती है, वे आराम-तलब होते जाते है और धीरे-धीरे (समय बीतने के साथ) पढ़ाई उनके लिए बहुत बड़ा बोझ लगने लगती है। फिर वे नाकामयाब हो जाते हैं या न-कामयाब माने जाने लगते है। ऐसे अमीर माँ-बाप अपने न-कामयाब बच्चों के न-कामयाबी से जिन्दगीभर अपने अन्दर ही अन्दर कुन्ठित होते रहते हैं और चिन्ताग्रस्त बने रहते है, और यही हाल उनके उन न-कामयाब बच्चों की होती है, जो
गरीब परिवारों के बच्चे अपने माँ-बाप की गरीबी और परेशानी देखते रहते है और उनके दिल-दिमाग में यह भावना जड़ पकड़ती / जमती रहती है कि वह पढ़ाई में ज्यादा से ज्यादा मेहनत करेगें और सर्व सामान्य का ध्यान अकर्षित करने वाली कामयाबी हासिल करके अपने माँ-बाप का नाम रोशन करेगें और उनकी आर्थिक परेशानी या अन्य परेशानियों को दूर करेगें। ऐसे बच्चे पढ़ाई में पूरे मनोयोग के साथ कठिन से कठिन परिश्रम करते है, फिर उन्हें ईश्वरीय मदद भी मिलती है और प्रायः उनकी मनोकामना पूरी भी हो जाती है। अमीर लोग अपने धन के बल पर अपने बच्चों को Competitions की तैयारी कराने के लिए कोटा, कानपुर, दिल्ली, पटना, कलकत्ता, पूना आदि शहरों में भेज तो देते है, लेकिन काफी बच्चें अपने माँ-बाप/परिवार की अमीरी के कारण सुख भोगी और आराम-तलब हो जाते हैं, जिससे वे अपनी/अपने माँ-बाप की इच्छा पूरी नहीं कर पाते हैं, नतीजतन कई तो हृदय विदारक कदम उठा बैठते है। ऐसा भी होता है कि अमीर लोग धन पैदा करने में लगे रहते हैं और अपने बच्चों की पढ़ाई पर व्यक्तिगत ध्यान नहीं दे पाते है। उन्हें इस बात से संतुष्टि और गुमान होता है कि वे अपने बच्चों की अधिकांश चाहते पूरी करते रहते हैं। वे अपने बच्चों के लिए टयूशन भी एक के बजाय दो या तीन भी लगा देते है। परन्तु उनके पास वक्त नहीं होता है कि वे बच्चों की पढ़ाई पर व्यक्तिगत ध्यान दे सके। नतीजा यह होता है कि ऐसे बच्चे आराम-तलब होते जाते हैं और कभी-कभार बुरी लत में भी पड़ जाते है। इस प्रकार उनकी जिन्दगी बरबाद होने के कगार पर पहुँच जाती है। मेरी सोच और कोशिश यही है कि मैं अमीरों के बच्चों को; ऐसी राह पकड़ने के पहले ही सही राह पकड़ा दूँ।
मैं अपने द्वितीय प्रयास में ही उ०प्र० पी०सी०एस० के (Executive Branch) अर्थात कार्यकारी शाखा के लिए कामयाब हो गया, क्योंकि मेरे मन-मस्तिष्क में यह इच्छा उत्तरोत्तर बलवती होती रही कि मैं पढ़ाई के बल पर अपने माँ-बाप का मान-सम्मान बढ़ाऊँ। मेरे अध्ययन-काल में कक्षा 8 तक प्रायः सरकारी विद्यालय में ही पढ़ना सम्भव हो पाता था। सरकारी विद्यालयों में शिक्षा शुल्क नाम मात्र का ही लगता था। मुझको तो शिक्षा-शुल्क से अधिक छात्र-वृत्ति ही मिल जाया करती थी। इण्टरमीडिएट तक की पढ़ाई सामान्य छात्र-वृत्ति / राष्ट्रीय छात्र-वृत्ति के बल पर पूरी किया और तृतीय श्रेणी की सरकारी नौकरी बड़ी आसानी से मिल गई। मेरी शादी तो हाईस्कूल में रहते ही हो गई थी, जिससे नौकरी करते हुए मॉर्निंग-क्लासेज अटेण्ड करके बी०ए० करना, फिर पी०सी०एस० Competition की तैयारी करना मेरे लिए काफी आसान हो गया था। मेरे कठिन प्रयासों से ईश्वर की मर्जी भी जुड़ गई और मै द्वितीय प्रयास में ही पी०सी०एस० (इक्जीक्यूटिव ब्रांच) में कामयाब / सेलेक्ट हो गया। मेरी प्रबल इच्छा और प्रयास है कि मै जिन सोचों, प्रयासों तौर-तरीकों से पढ़ाई करके पी०सी०एस० में कामयाब हुआ, उन्हीं तौर-तरीकों से अपने कॉलेज के बच्चों को JEPSIDIMAS के किसी ओहदे तक पहुँचने के लिए सक्षम बनाऊँ।
हमारा सूत्र – वाक्य रहेगाः–
कोशिश हमारी – मेहनत बच्चों की – मदद ईश्वर की।
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